Couplets Poetry (page 280)
अदम वालों की सोहबत से भी नफ़रत हो गई अब तो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अभी आग़ाज़-ए-मोहब्बत है कुछ इस का अंजाम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अब शीशा-ए-साअत की तरह ख़ुश्की के बाइस
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अब मिरी बात जो माने तो न ले इश्क़ का नाम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अब ख़ुदा मग़फ़िरत करे उस की
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अब जिस दिल-ए-ख़्वाबीदा की खुलती नहीं आँखें
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आता नहीं समझ में कि कहते हैं किस को इश्क़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आस्तीं उस ने जो कुहनी तक चढ़ाई वक़्त-ए-सुब्ह
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आसमाँ को निशाना करते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आसिफ़ुद्दौला-ए-मरहूम वो था शुस्ता-मिज़ाज
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आसाँ नहीं दरिया-ए-मोहब्बत से गुज़रना
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आप हर दम जो ये कहते हैं कि तू क्यूँ है खड़ा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आँखों को फोड़ा डालूँ या दिल को तोड़ डालूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आँखें न चुरा 'मुसहफ़ी'-ए-रेख़्ता-गो से
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आलम से हमारा कुछ मज़हब ही निराला है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आलम को इक हलाक किया उस ने 'मुसहफ़ी'
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आलम के मुरक़्क़ा को किया सैर मैं लेकिन
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आलम इस कार-ए-सन'अ का है तुर्फ़ा कि याँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आख़िर तो अर्श पर हैं अर्वाह-ए-शाइराँ भी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आज की शब गर रहेंगे 'मुसहफ़ी' बैरून-ए-दर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आई जो रूह-ए-लैला ज़ियारत को क़ैस की
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आग़ोश की हसरत को बस दिल ही में मारुँगा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आदमी से आदमी की जब न हाजत हो रवा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आदमी को ग़फ़लत-ए-दुनिया नहीं देती नजात
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
आधी रात आए तिरे पास ये किस का है जिगर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मैं अगर चुप हूँ ये बहता हुआ दरिया क्या है
मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी
किसी का नाम न लूँ और ग़ज़ल के पर्दे में
मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी
देखा नहीं उस को कितने दिन से
मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी
वो सर्दियों की धूप की तरह ग़ुरूब हो गया
मुसव्विर सब्ज़वारी
थे उस के साथ ज़वाल-ए-सफ़र के सब मंज़र
मुसव्विर सब्ज़वारी