Couplets Poetry (page 279)

अव्वल तो थोड़ी थोड़ी चाहत थी दरमियाँ में

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

औरों की तरफ़ तू देखता है

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

और सरगर्म किया तेरी कशिश ने मुझ को

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

अश्क से मेरे बचे हम-साया क्यूँ-कर घर समेत

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

अपनी तो इस चमन में नित उम्र यूँही गुज़री

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

अपनी ग़रज़ को आए थे वो रात 'मुस्हफ़ी'

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

अपना तो तूल-ए-उम्र से घबरा गया है जी

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

अमआ की परी माने-ए-पर्वाज़ है जिस तरह

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

अल्लाह-रे तेरे सिलसिला-ए-ज़ुल्फ़ की कशिश

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

अल्लाह-रे काफ़िरी तिरे तर्ज़-ए-ख़िराम की

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

अक्स से अपने अगर राह नहीं तुम को तो जान

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐसी आज़ुर्दगी क्या थी हमें इस कूचे से

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐश-ए-जहाँ बग़ल में तुम्हारी सब आ रहा

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐ ज़ाहिदो बातिल से क़सम खाओ जो पहले

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐ 'मुसहफ़ी' उस्ताद-ए-फ़न-ए-रेख़्ता-गोई

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐ 'मुसहफ़ी' उसे भी रखता है शाद जी में

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐ 'मुसहफ़ी' तुर्बत का मिरी नाम न लेना

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐ 'मुसहफ़ी' तू इन से मोहब्बत न कीजियो

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐ 'मुसहफ़ी' तू और कहाँ शेर का दावा

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐ 'मुसहफ़ी' शायर नहीं पूरब में हुआ मैं

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐ 'मुस्हफ़ी' सद-शुक्र हुआ वस्ल मयस्सर

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐ 'मुसहफ़ी' गावे ये ग़ज़ल मेरी जो राँझा

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐ 'मुसहफ़ी' अब चखियो मज़ा ज़ोहद का तुम ने

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐ काश कोई शम्अ के ले जा के मुझे पास

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐ इश्क़ जहाँ है यार मेरा

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐ फ़लक तुझ को क़सम है मिरी इस को न बुझा

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐ फ़लक किस ने कहा था तुझे ये तो बतला

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ऐ दिल-ए-बे-जुरअत इतनी भी न कर बे-जुरअती

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

अहल-ए-नसीहत जितने हैं हाँ उन को समझा दें ये लोग

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

अगरचे दिल तो हमें तुम से कुछ अज़ीज़ नहीं

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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