Couplets Poetry (page 278)
छेड़ मत हर दम न आईना दिखा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
चेहरे पे एक के भी न पाया वफ़ा का रंग
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
चश्म-ए-लैला का जो आलम है उन्हों की चश्म में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
चराग़-ए-हुस्न-ए-यूसुफ़ जब हो रौशन
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
चमन को आग लगावे है बाग़बाँ हर रोज़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
चली भी जा जरस-ए-ग़ुंचा की सदा पे नसीम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
चाहूँगा मैं तुम को जो मुझे चाहोगे तुम भी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
चाहता हूँ उस को मैं वो चाहता मुझ को नहीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
चाक करता है अभी जामा-ए-उर्यानी को
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बिन ख़ूँ से लिक्खे कोई होता है नामा रंगीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बीमार दिल जुदा है इधर मैं उधर जुदा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
भूल जावे साहिब-ए-इक़बाल अपनी सर-कशी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बे-मुरव्वत तुझे आज़ुर्दा करेंगे हम लोग
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बाज़ार से गुज़रे है वो बे-पर्दा कि उस को
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बस-कि तेज़ाब से कुछ कम भी न था वो दम-ए-क़त्ल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बस-कि हों मिल्लत-ओ-मज़हब से जहाँ के आज़ाद
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बस तू ने अपने मुँह से जो पर्दा उठा दिया
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बस बहुत ज़ब्त-ए-ग़म-ए-इश्क़ किया
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बारा-वफ़ातें बीसवीं झड़ियाँ हैं सौ जगह
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बैठा था आ के क़ैस तो लैला के दर पे लेक
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बहुत दिलों को सताया है तू ने ऐ ज़ालिम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बाग़बाँ काटियो मत मौसम-ए-गुल में उस को
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बद-गुमानी ने मुझे क्या क्या सताया क्या कहूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बातों ने उस की हम को ख़ामोश कर दिया है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बातों में लगाए ही मुझे रखता है ज़ालिम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बातें कई ज़बानी मैं ने कही हैं उस से
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बाम-ए-फ़लक पे गर वो उड़ाता नहीं पतंग
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बाल अपने बढ़ाते हैं किस वास्ते दीवाने
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अज़-बस-कि तू प्यारा है मुझे तेरे सिवा यार
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अव्वल-ए-उम्र में देखा उसे जिस ने ये कहा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी