Couplets Poetry (page 277)
दिल उलझता रहा ता-सुब्ह हमारा शब को
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दिल ले गया है मेरा वो सीम-तन चुरा कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दिल ख़ुश न हुआ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से निकल कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दिल के आईने की हम लेते हैं तब है है ख़बर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दिल ही दिल में याँ मोहब्बत अपना घर करती रही
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दिल दुखा ही करे है सीने में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दिल डूब गया टूट गया सब्र का लंगर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दिल और सियह हो गए माह-ए-रमज़ाँ में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ध्यान बाँधूँ हूँ जो मैं उस की हम-आग़ोशी का
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ढूँढता है मुझे वो तेग़ लिए और मैं वहीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
धोया गया तमाम हमारा ग़ुबार-ए-दिल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
धो डालिए ख़ून 'मुसहफ़ी' का
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ढे जाने का कुछ घर के मुझे ग़म नहीं इतना
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
देखना कम-निगही कीजियो मत ऐ साक़ी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
देखें तो क्यूँकर वो काफ़िर दर तक अपने न आवेगा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दौलत-ए-फ़क़्र-ओ-फ़ना से हैं तवंगर हम लोग
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दस्त-ए-शिकस्ता अपना न पहुँचा कभी दरेग़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दारुश्शफ़ा-ए-इश्क़ में ले जा के हम को इश्क़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दर्द-ओ-ग़म को भी है नसीबा शर्त
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दामन-कशाँ वो जाए था सैर-ए-चमन को और
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
डाल कर ग़ुंचों की मुँदरी शाख़-ए-गुल के कान में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दैर ओ हरम ब-चशम-ए-हक़ीक़त नहीं जुदा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दाग़-ए-पेशानी-ए-ज़ाहिद न गया जीते-जी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दाग़-ए-दिल शब को जो बनता है चराग़-ए-दहलीज़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दफ़ीना घर में क्या था और तो हम बादा-नोशों के
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
चीन-ए-पेशानी न दिखलाओ मैं हूँ नाज़ुक-मिज़ाज
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
छुआ हो अगर मैं ने काकुल को तेरी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
छोड़ा न एक लहज़ा तिरी ज़ुल्फ़ ने ख़याल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
छेड़े है उस को ग़ैर तो कहता है उस से यूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी