Couplets Poetry (page 276)
ग़बग़ब से बचा दिल तो ज़ख़ंदान में डूबा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गरचे तुम ताज़ा गुल-ए-गुलशन-ए-रानाई हो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गर ज़माने की अदावत है यही मुझ से तो मैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गर ये आँसू हैं तो लाख आवेंगे दरिया जोश में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गर समझते वो कभी मअनी-ए-मत्न-ए-क़ुरआँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गर रहूँ शहर में हो दूद के बाइस ख़फ़क़ाँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गर मज़ा चाहो तो कतरो दिल सरौते से मिरा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गर ख़ाक से हमारी पुतला कोई बनावे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गर जोश पे टुक आया दरियाव तबीअत का
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गर देखिए तो आईना-ए-क़द-नुमा की शक्ल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गर और भी मिरी तुर्बत पे यार ठहरेगा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गली में उस की हुई हल्क़ याँ तक आसूदा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गह तीर मारता है गह संग फेंकता है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गए हैं यार अपने अपने घर दालान ख़ाली है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
फ़िक्र-ए-सुख़न तलाश-ए-मआश ओ ख़याल-ए-यार
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
फ़रियाद को मजनूँ की सुने कौन जहाँ हों
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
फ़लक की ख़बर कब है ना-शाइरों को
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ए'तिबारात हैं ये हस्ती-ए-मौहूमी के
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
एक नाले पे है मआश अपनी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
इक जाम-ए-मय की ख़ातिर पलकों से ये मुसाफ़िर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
इक हाल हो तो यारो उस का बयाँ करें हम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
इक दिन तो लिपट जाए तसव्वुर ही से तेरे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
इक दर्द-ए-मोहब्बत है कि जाता नहीं वर्ना
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
इक बिजली की कौंद हम ने देखी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दुख़्तर-ए-रज़ की हूँ सोहबत का मुबाशिर क्यूँ-कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दो तीन दम-ए-सर्द भरे हैं तो वो बोले
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दिन को है सहरा-नवर्दी से हमें काम ऐ रफ़ीक़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दिल्ली पे रोना आता है करता हूँ जब निगाह
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दिल्ली में अपना था जो कुछ अस्बाब रह गया
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
दिल-ए-मायूस को पहने हुए आती हैं नज़र
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी