Couplets Poetry (page 275)
हसरत पे उस मुसाफ़िर-ए-बे-कस की रोइए
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हरगिज़ रहा न काफ़िर ओ मोमिन से उस को काम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हरगिज़ न मुझ से साफ़ हुआ यार या नसीब
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हरगिज़ किया न बाद-ए-ख़िज़ाँ का भी इंतिज़ार
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हर्बा है आशिक़ों का फ़क़त आह-ए-पेचदार
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हर दम पुकारते हो किनाए से क्या मियाँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हर चंद अमरदों में है इक राह का मज़ा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हम-सफ़ीरों से सबा कहियो कि तुम में भी कभी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हमेशा शेर कहना काम था वाला-निज़ादों का
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हल्क़ा-ए-ज़ंजीर से निकला न ये पा-ए-जुनूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हैराँ हूँ इस क़दर कि शब-ए-वस्ल भी मुझे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हैं यादगार-ए-आलम-ए-फ़ानी ये दिनों चीज़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
है ये फ़लक-ए-सिफ़्ला वो फीका सा फ़रंगी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
है यहाँ किस को दिमाग़ अंजुमन-आराई का
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
है तिरी कू में ख़बर हश्र के हंगामे की
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
है रोज़-ए-पंज-शम्बा तू फ़ातिहा दिला दे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
है मौसम-ए-बहार का आग़ाज़ क़हर है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
है ईद का दिन आज तो लग जाओ गले से
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गुलशन में हवा से जो खुला यार का सीना
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गुल ही इस बाग़ से जाने पे नहीं बैठा कुछ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गोया गिरह बहाने की एक उस पे थी लगी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गो ज़ख़्मी हैं हम पर उसे क्या ग़म है हमारा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गो मैं बुतों में उम्र को काटा तो क्या हुआ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गो कि तू 'मीर' से हुआ बेहतर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गो भूल गया हूँ मैं तुझे तो भी तिरा रंग
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
गो अब हज़ार शक्ल से जल्वा करे कोई
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ुबार-ए-दिल को में मिज़्गान-ए-यार से झाड़ा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल ऐ 'मुसहफ़ी' ये 'मीर' की है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
घटती है शब-ए-वस्ल तो कहता हूँ मैं या-रब
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
घर में बाशिंदे तो इक नाज़ में मर जाते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी