Couplets Poetry (page 274)
इस में आलम की सब आबादी ओ वीराना है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
इसी सबब तो परेशाँ रहा मैं दुनिया में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
इश्क़-ए-फ़ुज़ूँ में मेरे न हो दोस्तो कमी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
इस वास्ते फ़ुर्क़त में जीता मुझे रक्खा है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
इस तरफ़ भी कभी आना कि असीरान-ए-क़फ़स
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
इस रंग से अपने घर न जाना
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
इस नौ-बहार में तो तरह गुल के ऐ नसीम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
इस इमारत पर न कर मुनइम ग़ुरूर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
इस हवा में कर रहे हैं हम तिरा ही इंतिज़ार
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
इन दिनों शहर से जी सख़्त ब-तंग आया है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ईद तू आ के मिरे जी को जलावे अफ़्सोस
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ईद अब के भी गई यूँही किसी ने न कहा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हूँ मुशव्वश मुझे इस दम न लगा हाथ सबा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हम से वो बे-सबब उलझती है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हम से पाई नहीं जाती कमर उस की ऐ ज़ुल्फ़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हम ने भेजा तो है उस गुल को ज़बानी पैग़ाम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हम सुबुक-रूह असीरों के लिए लाज़िम है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हम सनम दम तिरे इश्क़ का भर गए
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हम न शाना न सबा हैं नहीं खुलता है ये भेद
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हम 'मुसहफ़ी' ब-कुफ़्र तो मशहूर हो चुके
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हम गबरू हम मुसलमाँ हम जम्अ हम परेशाँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हम भी ऐ जान-ए-मन इतने तो नहीं नाकारा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
होवे न अज़ाब उस पे कभी जिस के पस-ए-मर्ग
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
होती नहीं है दिल को तसल्ली किसी तरह
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
होता है मुसाफ़िर को दो-राहे में तवक़्क़ुफ़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
होश उड़ जाएँगे ऐ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ तेरे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
होंटों तक आते आते हुई वो भी सर्द आह
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हिन्दोस्ताँ में दौलत ओ हशमत जो कुछ कि थी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हाथों से उस के शीशा-ए-दिल चूर है मिरा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
हाथ दोनों कफ़-ए-अफ़्सोस की सूरत लिक्खे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी