Couplets Poetry (page 272)
कर के ज़ख़्मी तू मुझे सौंप गया ग़ैरों को
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कर के सदक़े रख दिया दिल यूँ मैं उस की राह में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
काँटा हुआ हूँ सूख के याँ तक कि अब सुनार
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कम है कुछ कुंदन से क्या चेहरे का उस के रंग-ए-ज़र्द
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कल सू-ए-ग़ैर उस ने कई बार की निगाह
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कल क़ाफ़िला-ए-निक्हत-ए-गुल होगा रवाना
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कैसी फ़रफ़र ज़बान चलती है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कैसा ये दिन है जो नहीं लाता है रू-ब-शाम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कहूँ तो किस से कहूँ अपना दर्द-ए-दिल मैं ग़रीब
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कहते हो एक-आध की है मेरे हाथों मौत
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कहिए जो झूट तो हम होते हैं कह के रुस्वा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कहीं देखा है इस हैअत का माशूक़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कह दो मजनूँ से करे अपनी सवारी तय्यार
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
काफ़िर मुझे न कहियो ऐ मोमिनान-ए-सादिक़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
काबा ओ दैर में ढूँडे जो कहीं ले के चराग़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कब शब-ए-वस्ल वो आया कि मिरे और उस के
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
काम क्या है प नहीं चाहती हिम्मत हरगिज़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
काम अज़-बस-कि ज़माने का हुआ है बर-अक्स
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
जो तू ऐ 'मुसहफ़ी' रातों को इस शिद्दत से रोवेगा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
जो शम्अ है काबे की वही नूर का शोअ'ला
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
जो शैख़-ए-शहर आया हम से औबाशों की मज्लिस में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
जो मुझ आतिश-नफ़्स ने मुँह लगाया उस को ऐ साक़ी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
जो मिला उस ने बेवफ़ाई की
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
जो कि पेशानी पे लिक्खा है वही होता है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
जो है सो तुम्हारा ही तरफ़-दार है साहिब
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
जितना कि ये दुनिया में हमें ख़्वार रखे है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
जीते अगर न हम तो क्यूँ ज़िल्लतें उठाते
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
जिस्म-ए-ख़ाकी को बनाया लाग़री ने ऐन-रूह
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
जिस्म ने रूह-ए-रवाँ से ये कहा तुर्बत में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
जिस वक़्त कि कोठे पर वो माह-ए-तमाम आवे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी