Couplets Poetry (page 271)
कूचा-ए-यार में रहने से नहीं और हुसूल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कोई घर बैठे क्या जाने अज़िय्यत राह चलने की
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
किसी के हाथ तो लगता नहीं है इक अय्यार
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
किसी के अक़्द में रहती नहीं है लूली दहर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
किसी जंगल के गुल-बूटे से जी मेरा बहल जाता
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
किश्वर-ए-दिल अब मकान-ए-दर्द-ओ-दाग़-ओ-यास है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
किस ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम के आई है मुक़ाबिल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
किस वक़्त जुदा मुझ से वो कम्बख़्त हुई थी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
किस की ख़ातिर को मुक़द्दम रख्खूँ मैं हैरान हूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
किस के मजरूह गुलिस्ताँ में हैं मदफ़ूँ जो हनूज़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ख़्वारियाँ बदनामियाँ रुस्वाइयाँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ख़्वाहिश-ए-वस्ल तो रखता हूँ बहुत जी में वले
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ख़्वाहिश-ए-वस्ल का मज़मूँ जो किसी सत्र में था
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ख़्वाब-ए-आराम में सोता था वो गुल क़हर हुआ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ख़्वाब का दरवाज़ा कुइ मसदूद कर देता है रोज़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ख़ुर्शीद-रू हमारा जिस से मिलेगा हर सुब्ह
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
खुलता है क़ुफ़्ल-ए-ऐश मिरा इस से 'मुसहफ़ी'
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ख़ुदा रक्खे ज़बाँ हम ने सुनी है 'मीर' ओ 'मिर्ज़ा' की
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ख़ुदा हम तो शब-ए-फ़िराक़ से मजबूर हो गए
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ख़ूब-रूयों की मोहब्बत से करें क्यूँ तौबा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
खावेंगे टाँके ज़ख़्म-ए-सर-ओ-रू पर ऐ तबीब
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ख़ाना-ए-दिल पे बिना अर्श की तू रख तो सही
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ख़ाक-ए-बदन तिरी सब पामाल होगी इक दिन
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ख़ाक-ए-आग़श्ता-ब-ख़ूँ को मिरी बे-क़द्र न जान
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कौन कहता है कि फिर ख़ाक से उठते हैं शहीद
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कटता हूँ मैं भी वो कि मिरी जिंस-ए-दिल को देख
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कशिश ने इश्क़ की क्या काम कुछ किया थोड़ा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
काश सोता ही रहूँ मैं कि नहीं चाहता दिल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
करता हूँ सवाल जिस के दर पर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कर्बला है ये गली क्या जो नहीं मिलता याँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी