Couplets Poetry (page 269)

मैं वो गर्दन-ज़दनी हूँ कि तमाशे को मिरे

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं वो दोज़ख़ हूँ कि आतिश पर मिरी

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं उन मुसाफ़िरों में हूँ इस चश्म-ए-तर के हाथ

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं तुझ को याद करता हूँ इलाही

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं तो समझूँगा जो समझाते हो मुझ को हर घड़ी

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं तो जाता हूँ तरफ़ काबे के पर काफ़िर ये पाँव

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं तेरे डर से न देखा उधर बहुत शब-ए-वस्ल

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं तरह डालूँ अगर सोच कर कहीं घर की

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं सवा शेर के कुछ और समझता ही नहीं

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं निगाह-ए-पाक से देखे था तिरे हुस्न-ए-पाक को इस पे भी

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं क्यूँकर न रख्खूँ अज़ीज़ अपने दिल को

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं क्या कहूँ उस नग़मा-ए-मस्तूर की तस्वीर

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं क्या जानूँ क़लक़ क्या चीज़ है पर इतना जानूँ हूँ

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं किस क़तार में हूँ जहाँ मुझ से सैकड़ों

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं किंगरा-ए-अर्श से पर मार के गुज़रा

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं कर के चला बातें और उस शोख़ ने वोहीं

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं जो कुछ हूँ सो हूँ क्या काम है इन बातों से

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं जिन को बात करना ऐ 'मुसहफ़ी' सिखाया

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मैं अजब ये रस्म देखी मुझे रोज़-ए-ईद-ए-क़ुर्बां

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

माइल-ए-गिर्या मैं याँ तक हूँ कि आज़ा पे मिरे

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मय पीने से वो आरिज़ क्या और हो गए थे

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

महरूम है नामा-दार-ए-दुनिया

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

माह की आँख जो रहती है लगी ऊधर ही

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मग़रिब में उस को जंग है क्या जाने किस के साथ

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मादर-ए-दहर उठाती है जो हर दम मिरे नाज़

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

लुट के मंज़िल से कोई यूँ तो न आया होगा

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

लोग कहते हैं मोहब्बत में असर होता है

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

लिया मैं बोसा ब-ज़ोर उस सिपाही-ज़ादे का

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ले क़ैस ख़बर महमिल-ए-लैला तो न होवे

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

ले लिया प्यार से अक्स अपने का झुक कर बोसा

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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