Couplets Poetry (page 268)
मुहताज-ए-ज़ेब-ए-आरियती कब है ज़ात-ए-बह्त
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मुफ़्लिस के दिए की सी तिरा दाग़-ए-दिल अपना
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मु-ए-जुज़ 'मीर' जो थे फ़न के उस्ताद
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मिज़्गाँ-ज़दन से कम है ज़मान-ए-नमाज़-ए-इश्क़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मिस्र को छोड़ के आई है जो हिंदुस्ताँ में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मिला है आशिक़ी में रुतबा-ए-पैग़म्बरी मुझ को
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मेरे दिल-ए-शिकस्ता को कहती है देख ख़ल्क़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मेरे और यार के पर्दा तो नहीं कुछ लेकिन
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मिरा सलाम वो लेता नहीं मगर समझा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मेहंदी के धोके मत रह ज़ालिम निगाह कर तू
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मेहनत पे टुक नज़र कर सूरत गर अज़ल ने
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मज़े में अब तलक बैठा मैं अपने होंठ चाटूँ हूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और राग के
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मातम में फ़ौत-ए-उम्र के रोता हूँ रात दिन
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मत गोर-ए-ग़रीबाँ पर घोड़े को कुदाओ यूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मरते मरते इसी बुत का मुझे कलमा पढ़ना
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मर्ग की देखते ही शक्ल गए भाग हवास
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मारे हया के हम से वो कल बोलता न था
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मार नहिं डालते हैं यूँ उस को
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मर जाऊँगा मैं या वही जावेगा मुझे मार
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मक़्तल-ए-यार में टुक ले तो चलो ऐ यारो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मक़्सूद है आँखों से तिरा देखना प्यारे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मंज़िल-ए-मर्ग के आ पहुँचे हैं नज़दीक अब तो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मंसूर ने न ज़ुल्फ़ के कूचे की राह ली
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मजनूँ कहानी अपनी सुनावे अगर मुझे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मज्लिस में उस की अब तो दरबार सा लगे है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मैं ने क्या और निगह से तिरे रुख़ को देखा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मैं ने किस चश्म के अफ़्साने को आग़ाज़ किया
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मैं ने कहा था उस से अहवाल-ए-गिरिया अपना
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मैं ज़ुल्फ़ मुँह में ली तो कहा मार खाएगा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी