Couplets Poetry (page 267)
नज़रों में एक बोसा माँगा था हम ने उस से
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नज़्र को किस गुल-ए-नौ-रस्ता के दामन में नसीम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नसीम मुज़्तरिब-उल-हाल जाए थे पीछे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नासेहा दूर हो चल मुझ से तू हिज्जे मत कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नक़्शा है उन की चश्म में लैला की चश्म का
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नमली और न दूदी है न मंशारी है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नख़्ल-ए-हिरमाँ को न थी बालीदगी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नफ़ी ओ इसबात का हंगामा रहा उस कू मैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ना-अहल हम हैं वर्ना सरापा में यार के
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
न आया शाम भी घर फिर के अपने
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मुज़्दा ऐ यास कि याँ कुंज-ए-क़फ़स के क़ैदी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मुवाफ़क़त हो जो ताले की उस की मज्लिस में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
'मुसहफ़ी' तू ने ज़ि-बस गुल के लिए हैं बोसे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
'मुसहफ़ी' शिर्क भी ऐसे का नहीं यार बुरा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
'मुसहफ़ी' रशहा-ए-क़लम से मिरे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
'मुसहफ़ी' मैं हूँ अब और जामा-ए-उर्यानी है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
'मुसहफ़ी' क्यूँके छुपे उन से मिरा दर्द-ए-निहाँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
'मुसहफ़ी' कुछ कम नसारा से नहीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
'मुसहफ़ी' इस से भी रंगीं ग़ज़ल इक और लिखी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
'मुसहफ़ी' हम तो ये समझे थे कि होगा कोई ज़ख़्म
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
'मुसहफ़ी' होता मुसलमान जो मुझ सा काफ़िर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
'मुसहफ़ी' हर घड़ी जाया न करो तुम साहिब
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
'मुसहफ़ी' गरचे ये सब कहते हैं हम से बेहतर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
'मुसहफ़ी' फ़ारसी को ताक़ पे रख
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मुसव्विरों ने क़लम रख दिए हैं हाथों से
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मूसा ने कोह-ए-तूर पे देखा जो कुछ वही
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मुल्हिद हूँ अगर मैं तो भला इस से तुम्हें क्या
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मुझ से जो मेरी ज़ोहरा मिलती नहीं है अब तक
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मुझ को ये सोच है जीते हैं वे क्यूँ-कर या-रब
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मुझ को पामाल कर गया है वही
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी