हर अदा मश्कूक तेरी मुश्तबा हर बात है
हर अदा मश्कूक तेरी मुश्तबा हर बात है
अल्लाह रक्खे तू तो इक गंजीना-ए-शुबहात है
चोर-बाज़ारी स्मुग्गलिंग क़त्ल-ओ-ग़ारत लूट-मार
क्या कमी है अपने हाँ हर चीज़ की बुहतात है
उन को सिर्फ़ इस काम में उलझाए रखना है ग़लत
हम ने माना बच्चे जनना कार-ए-मस्तूरात है
नोट दिखला कर उसे हम खेंच लाए अपने हाँ
हम न कहते थे कि पैसा क़ाज़ी-उल-हाजात है
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