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दोनों की आरज़ू में चमक बरक़रार है - चित्रांश खरे कविता - Darsaal

दोनों की आरज़ू में चमक बरक़रार है

दोनों की आरज़ू में चमक बरक़रार है

मैं उस तरफ़ हूँ और वो दरिया के पार है

दुनिया समझ रही है की उस ने भुला दिया

सच ये है उस को अब भी मिरा इंतिज़ार है

शायद मुझे भी इश्क़ ने शादाब कर दिया

मेरे दिल-ओ-दिमाग़ में हर पल ख़ुमार है

क्यूँ मैं ने उस के प्यार में दुनिया उजाड़ ली

इस बात से वो शख़्स बहुत शर्मसार है

तू ने अदा से देख कर मजबूर कर दिया

तीर-ए-निगाह दिल के मिरे आर-पार है

दौलत से तो ज़रा भी मोहब्बत नहीं मुझे

फिर भी मिरे नसीब में ये बे-शुमार है

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