उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वा'दा न वफ़ा करते वा'दा तो किया होता
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इस तरह कर गया दिल को मिरे वीराँ कोई
जब से तेरा करम है बंदा-नवाज़
दिल बला से निसार हो जाए
आओ हुस्न-ए-यार की बातें करें
या-रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता
ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने
उमीद-ए-वस्ल ने धोके दिए हैं इस क़दर 'हसरत'
मोहब्बत किस क़दर यास-आफ़रीं मालूम होती है
ये मायूसी कहीं वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल न बन जाए