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जब से तेरा करम है बंदा-नवाज़ - चराग़ हसन हसरत कविता - Darsaal

जब से तेरा करम है बंदा-नवाज़

जब से तेरा करम है बंदा-नवाज़

सोज़ है सोज़ और न साज़ है साज़

मैं हूँ और मेरी बे-पर-ओ-बाली

दिल है और दिल की जुरअत-ए-परवाज़

हुस्न की बरहमी मआज़-अल्लाह

गेसुओं के बिखरने का अंदाज़

ज़ुल्फ़-ए-बरहम झुकी हुई नज़रें

गर्दन-ए-नाज़ में कमंद-ए-नियाज़

कद्द-ए-बाला ओ दामन-ए-कोताह

मंज़िल-ए-इश्क़ के नशेब ओ फ़राज़

क़त्अ होने लगा है रिश्ता-ए-ज़ीस्त

ऐ ग़म-ए-यार तेरी उम्र दराज़

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