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नज़्म - चाैधरी मोहम्मद नईम कविता - Darsaal

नज़्म

अभी कुछ दिन मुझे इस शहर में आवारा रहना है

कि अब तक दिल को उस बस्ती की शामें याद आती हैं

जहाँ बेले की झाड़ी में किसी नागिन की ब़ाँबी थी

अभी तक दिल ये कहता है कि उस बस्ती में फिर जाओ

भरो दामन को फूलों से बदन नागिन से डसवाओ

जहाँ अब हूँ वहाँ बेला है न नागिन की ब़ाँबी है

इसी कारन ये ज़ालिम दिल मुझे उलझाए रखता है

इसी कारन मुझे इस शहर में आवारा रहना है

मगर जिस दिन ये रिश्ता याद का टूटा तो फिर उस दिन

न दिल होगा न ये एहसास ही कि दिल भी रखते थे

कि मेरी ज़ात में जो नाग है वो मुझ को डस लेगा

अभी कुछ दिन मुझे इस शहर में आवारा रहना है

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