भगवान-राम
ज़िंदगी इतरा रही है आज तेरे नाम पर
नाज़ है पैग़म्बरों को भी तिरे पैग़ाम पर
रहबर-ए-इंसानियत तेरी अक़ीदत के तुफ़ैल
हम ने ग़लबा पा लिया है गर्दिश-ए-अय्याम पर
मेरे दिल की वुसअ'तें अंगड़ाइयाँ लेने लगीं
जल्वा देखा जब तिरा हर मोड़ पर हर गाम पर
क्यूँ न हो फिर आक़िबत की फ़िक्र से वो बे-नियाज़
ज़िंदगी क़ुर्बान कर दी जिस ने तेरे नाम पर
मौजज़न है जिस में ऐ चर्ख़ इक सुरूर-ए-सरमदी
मेरी दुनिया है तसद्दुक़ इस छलकते जाम पर
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