यौम-ए-जम्हूर
यौम-ए-जम्हूर तेरे आने पर
नाच उठे हैं मसर्रतों के पयाम
इन उजालों में ज़ुल्मतें तो नहीं
सोचते हैं मिरे वतन के अवाम
जगमगाता है वक़्त का चेहरा
बे-बसों पर जहान हँसता है
अपने रुख़ पर नहीं है मौजा-ए-नूर
झोंपड़ी किस तरह हो रश्क-ए-महल
जाम-ए-जम्हूरियत तो पीते हैं
हसरतें दम जो तोड़ दें घुट कर
लेकिन इस में नहीं है कैफ़-ओ-सुरूर
ज़िंदगी क्यूँ न हो शिकार-ए-अजल
अपने हसरत-भरे मुक़द्दर का
इस तरह हम मज़ाक़ उड़ाते हैं
ख़ुद ही रोते हैं वक़्त का रोना
और फिर ख़ुद ही मुस्कुराते हैं
(2742) Peoples Rate This