जल्वा-ए-हुस्न से है सूरत-ए-औक़ात नई
जल्वा-ए-हुस्न से है सूरत-ए-औक़ात नई
दिन नया सुब्ह नई शाम नई रात नई
इन बदलते हुए हालात का मातम कैसा
हर नए दौर में बनती हैं रिवायात नई
हर मुलाक़ात का अंदाज़ नया होता है
जो भी होती है वो होती है मुलाक़ात नई
नया-पन हुस्न को विर्से में मिला हो जैसे
हर अदा उस की नई वज़्अ नई बात नई
चाँद-तारों में नया नूर उमड आता है
'चर्ख़' वो आते हैं आती है नज़र रात नई
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