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गुनगुनाती हुई आवाज़ कहाँ से लाऊँ - चरख़ चिन्योटी कविता - Darsaal

गुनगुनाती हुई आवाज़ कहाँ से लाऊँ

गुनगुनाती हुई आवाज़ कहाँ से लाऊँ

तेरी आवाज़ का अंदाज़ कहाँ से लाऊँ

तेरे अल्ताफ़ से रक़्साँ हैं लबों पर ख़ुशियाँ

ग़म में डूबी हुई आवाज़ कहाँ से लाऊँ

हाल-ए-दिल फूल से चेहरों को सुनाने के लिए

मैं लब-ए-ज़मज़मा-पर्वाज़ कहाँ से लाऊँ

मुझ से हंस हंस के तिरी मश्क़-ए-सितम होती है

तुझ सा मोनिस बुत-ए-तन्नाज़ कहाँ से लाऊँ

शोमी-ए-बख़्त है ये 'चर्ख़' कि वो कहते हैं

मैं मसीहाई का अंदाज़ कहाँ से लाऊँ

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