सर उठा के मत चलिए आज के ज़माने में
सर उठा के मत चलिए आज के ज़माने में
जान जाती रहती है हौसला दिखाने में
किस से हक़ तलब कीजे बेवफ़ा ज़माने में
होंठ सूख जाते हैं हाल-ए-दिल सुनाने में
हाथ की लकीरों से फ़ैसले नहीं होते
अज़्म का भी हिस्सा है ज़िंदगी बनाने में
खो गए कहाँ मेरे ए'तिबार के रिश्ते
किस ने बो दिए काँटे फूल से घराने में
मंज़िलों की बातें तो ख़्वाब जैसी बातें हैं
उम्र बीत जाती है रास्ता बनाने में
ऐ 'बशर' मिरी आँखें जुगनुओं की आदी थीं
किस ने बिजलियाँ रख दीं मेरे आशियाने में
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