फ़ित्ना-ए-रोज़गार की बातें
फ़ित्ना-ए-रोज़गार की बातें
ऐसी हैं जैसे यार की बातें
हिज्र में वस्ल-ए-यार की बातें
हैं ख़िज़ाँ में बहार की बातें
लाला-ओ-गुल कै ज़िक्र से बेहतर
एक जान-ए-बहार की बातें
छेड़ के साथ नोक झोक भी है
गुल से होती हैं ख़ार की बातें
सब समझते हैं मैं कहूँ न कहूँ
इस दिल-ए-बे-क़रार की बातें
छेड़ देता हूँ दिल-लगी के लिए
वस्ल में इंतिज़ार की बातें
जो न तुम रूठते तो कर लेते
और दो चार प्यार की बातें
नंग हैं अज़्म-ए-मुस्तक़िल के लिए
दहर-ना-पाएदार की बातें
दिल-नशीं हैं बसंत में 'कैफ़ी'
ये शराब-ओ-ख़ुमार की बातें
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