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दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना - चकबस्त ब्रिज नारायण कविता - Darsaal

दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना

दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-ईमाँ होना

आदमियत है यही और यही इंसाँ होना

नौ-गिरफ़्तार-ए-बला तर्ज़-ए-वफ़ा क्या जानें

कोई ना-शाद सिखा दे उन्हें नालाँ होना

रोके दुनिया में है यूँ तर्क-ए-हवस की कोशिश

जिस तरह अपने ही साए से गुरेज़ाँ होना

ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब

मौत क्या है इन्हीं अज्ज़ा का परेशाँ होना

दफ़्तर-ए-हुस्न पे मोहर-ए-यद-ए-क़ुदरत समझो

फूल का ख़ाक के तोदे से नुमायाँ होना

दिल असीरी में भी आज़ाद है आज़ादों का

वलवलों के लिए मुमकिन नहीं ज़िंदाँ होना

गुल को पामाल न कर लाल-ओ-गुहर के मालिक

है उसे तुर्रा-ए-दस्तार-ए-ग़रीबाँ होना

है मिरा ज़ब्त-ए-जुनूँ जोश-ए-जुनूँ से बढ़ कर

नंग है मेरे लिए चाक-गरेबाँ होना

क़ैद यूसुफ़ को ज़ुलेख़ा ने किया कुछ न किया

दिल-ए-यूसुफ़ के लिए शर्त था ज़िंदाँ होना

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