उन्हें ढूँडो
उन्हें ढूँढो सफ़र की शाम से पहले
किसी अंजाम से पहले
उन्हें ढूँडो
जो मिलने की घड़ी में
हम से बिछड़े थे
दिलों से फूटते इस ग़म से बिछड़े थे
जो आँखें ख़ुश्क रखता है
मगर दहलीज़-ए-जाँ तक
पानियों को छोड़ जाता है
जो रस्ता दिल की गलियों से निकलता हो
उसी रस्ते की हर इक सम्त को
वो मोड़ जाता है
मसर्रत की हरी शाख़ों को आ कर तोड़ जाता है
उन्हें ढूँडो
उदासी की किताबों से
तमन्ना के निसाबों में लिखी
तहरीर के मफ़्हूम से
जिस में उदासी ने
ख़ुद अपनी बेबसी का बाब लिक्खा था
शुऊर-ए-ज़ात का
धुँदला सा इक एहसास लिक्खा था
उन्हें ढूँडो
जुदाई की गली में
लौट आने का संदेसा छोड़ कर
रुख़्सत हुए थे जो
चराग़ों ने जिन्हें
इस आख़िरी साअ'त में देखा था
कि जब उन की लवें बुझने लगी थीं
और जब ख़ुद में मुकम्मल हो रहे थे
उन्हें ढूँडो जो आँखों से
फ़क़त इक ख़्वाब की
दूरी पे रहते हैं
जिन्हें आँखें
हज़ारों साल की फ़ुर्क़त को
ओढ़े ढूँडती हैं
हमेशा जागती हैं
(1111) Peoples Rate This