सोज़-ए-फ़िराक़ दिल में छुपाए हुए हैं हम

सोज़-ए-फ़िराक़ दिल में छुपाए हुए हैं हम

और लब पे इक सुकूत सजाए हुए हैं हम

जो आश्ना नहीं हैं मोहब्बत की आँच से

क्यूँ आस उन से फिर भी लगाए हुए हैं हम

शो'ले जो बुझ चुके हैं उन्हें तुम हवा न दो

दिल में ही एक आग लगाए हुए हैं हम

तौबा रे इन की संग-दिली और शौक़-ए-दीद

क्या ख़ूब हाल अपना बनाए हुए हैं हम

कहने को दूर हम से बहुत दूर वो सही

पर फ़ासले दिलों के मिटाए हुए हैं हम

जाते हैं दे के वो तो 'सबा' रुत ख़िज़ाओं की

दिल के चमन तो फिर भी खिलाए हुए हैं हम

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