शिकवा नसीब का न करे बार बार तू

शिकवा नसीब का न करे बार बार तू

मुश्किल हयात हँस के हमेशा गुज़ार तू

क्यूँ फ़िक्र हाल-ओ-माज़ी की करता है रोज़-ओ-शब

सब उस को इख़्तियार है बे-इख़्तियार तू

मायूस क्यूँ जफ़ाओं से होता है बे-वजह

सब के गले में डाल वफ़ाओं के हार तू

ख़ुद्दार बन ख़ुदी की तलब ले के जी सदा

बे-फ़िक्र उस पे जान भी कर दे निसार तू

वो सर-परस्त है तो 'सबा' तुझ को नाज़ है

अपना मक़ाम जान ले ख़ुद को सँवार तू

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