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तुझ से तसव्वुरात में ऐ जान-ए-आरज़ू - ब्रहमा नन्द जलीस कविता - Darsaal

तुझ से तसव्वुरात में ऐ जान-ए-आरज़ू

तुझ से तसव्वुरात में ऐ जान-ए-आरज़ू

बाँधे हैं हम ने सैंकड़ों पैमान-ए-आरज़ू

ऐ रश्क-ए-नौ-बहार तिरे इंतिज़ार में

क्या क्या खिलाए हम ने गुलिस्तान-ए-आरज़ू

फिर दिल में दाग़-हा-ए-तमन्ना हैं ज़ौ-फ़िशाँ

फिर कर रहा हूँ जश्न-ए-चराग़ान-ए-आरज़ू

देखे कोई ये रब्त कि मरने के बा'द भी

छूटा न दस्त-ए-शौक़ से दामान-ए-आरज़ू

अब देखिए गुज़रती है क्या उस की जान पर

इक दिल है और सैंकड़ों तूफ़ान-ए-आरज़ू

तेरा ख़याल तेरे नज़ारे तिरा जमाल

कितने चराग़ हैं तह-दामान-ए-आरज़ू

समझो न हम को बे-सर-ओ-सामाँ कि हम 'जलीस'

रखते हैं दिल में गंज-ए-फ़रावान-ए-आरज़ू

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