ना-उमीदी है बुरी चीज़ मगर
एक तस्कीन सी हो जाती है
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किया तबाह तो दिल्ली ने भी बहुत 'बिस्मिल'
फ़राहम जिस क़दर इशरत के सामाँ होते जाते हैं
ना-उम्मीदी है बुरी चीज़ मगर
मेरे दिल को भी पड़ा रहने दो
काबे में मुसलमान को कह देते हैं काफ़िर
रह-रव-ए-राह-ए-मोहब्बत कौन सी मंज़िल में है
वही होती है रहबर जो तमन्ना दिल में होती है
तुम जब आते हो तो जाने के लिए आते हो
सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते
किसी के सितम इस क़दर याद आए
बैठा नहीं हूँ साया-ए-दीवार देख कर
ख़ुश्बू को फैलने का बहुत शौक़ है मगर