किया तबाह तो दिल्ली ने भी बहुत 'बिस्मिल'
मगर ख़ुदा की क़सम लखनऊ ने लूट लिया
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Gulzar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(4548) Peoples Rate This
रह-रव-ए-राह-ए-मोहब्बत कौन सी मंज़िल में है
ज़माना-साज़ियों से मैं हमेशा दूर रहता हैं
ना-उमीदी है बुरी चीज़ मगर
कौन समझे इश्क़ की दुश्वारियाँ
सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते
अब इश्क़ रहा न वो जुनूँ है
किसी के सितम इस क़दर याद आए
काबे में मुसलमान को कह देते हैं काफ़िर
सुकूँ नसीब हुआ हो कभी जो तेरे बग़ैर
बैठा नहीं हूँ साया-ए-दीवार देख कर
तुम जब आते हो तो जाने के लिए आते हो
इश्क़ भी है किस क़दर बर-ख़ुद-ग़लत