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रह-रव-ए-राह-ए-मोहब्बत कौन सी मंज़िल में है - बिस्मिल सईदी कविता - Darsaal

रह-रव-ए-राह-ए-मोहब्बत कौन सी मंज़िल में है

रह-रव-ए-राह-ए-मोहब्बत कौन सी मंज़िल में है

दिल है बे-ज़ार-ए-मोहब्बत और मोहब्बत दिल में है

क्या ज़बाँ पर है किसी की क्या किसी के दिल में है

जिस की महफ़िल है वही जाने वो जिस मुश्किल में है

कारवान-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ अब तक कहीं ठहरा नहीं

क़ैस अभी सहरा में है लैला अभी महमिल में है

इशरत-ए-रफ़्ता का रोना क्या ग़म-ए-इमरोज़ में

ऐश-ए-फ़र्दा भी वो माज़ी है जो मुस्तक़बिल में है

रंग-ए-महफ़िल में नज़र आता है इक रंग-ए-दिगर

तेरी महफ़िल के सिवा भी कुछ तिरी महफ़िल में है

हम-सफ़र कुछ दिन रहे लेकिन ख़ुदा जाने कि अब

इश्क़ है किस मरहले में हुस्न किस मंज़िल में है

मंज़िल-ए-मक़्सूद 'बिस्मिल' वो नज़र आने लगी

हर नज़र मंज़िल पे जैसे हर क़दम मंज़िल में है

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