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कौन समझे इश्क़ की दुश्वारियाँ - बिस्मिल सईदी कविता - Darsaal

कौन समझे इश्क़ की दुश्वारियाँ

कौन समझे इश्क़ की दुश्वारियाँ

इक जुनूँ और लाख ज़िम्मेदारियाँ

एहतिमाम-ए-ज़िंदगी-ए-इश्क़ देख

रोज़ मर जाने की हैं तैयारियाँ

इश्क़ का ग़म वो भी तेरे इश्क़ का

कौन कर सकता मिरी ग़म-ख़्वारियाँ

बे-ख़ुदी-ए-इश्क़ जैसे ग़म की नींद

ग़म की नींदें रूह की बेदारियाँ

इश्क़ भी है किस क़दर बर-ख़ुद-ग़लत

उन की बज़्म-ए-नाज़ और ख़ुद्दारियाँ

इस मोहब्बत उस जवानी की क़सम

फिर न ये नींदें न ये बेदारियाँ

ये नियाज़-ए-आरज़ूमंदी न देख

और कुछ हैं इश्क़ की ख़ुद्दारियाँ

इख़्तिलाज-ए-क़ल्ब के दौरे नहीं

इश्क़ की 'बिस्मिल' हैं दिल-आज़ारियाँ

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