न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे
न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे
ख़ुदा के वास्ते देखो न मुस्कुरा के मुझे
सिवाए दाग़ मिला क्या चमन में आ के मुझे
क़फ़स नसीब हुआ आशियाँ बना के मुझे
अदब है मैं जो झुकाए हुए हूँ आँख अपनी
ग़ज़ब है तुम जो न देखो नज़र उठा के मुझे
इलाही कुछ तो हो आसान नज़'अ की मुश्किल
दम-ए-अख़ीर तो तस्कीन दे वो आ के मुझे
ख़ुदा की शान है मैं जिन को दोस्त रखता था
वो देखते भी नहीं अब नज़र उठा के मुझे
मिरी क़सम है तुम्हें रहरवान-ए-मुल्क-ए-अदम
ख़ुदा के वास्ते तुम भूलना न जा के मुझे
हमारा कौन ठिकाना है हम तो 'बिस्मिल' हैं
न अपने आप को रुस्वा करो सता के मुझे
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