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न रहे तुम जो हमारे तो सहारा न रहा - बिस्मिल इलाहाबादी कविता - Darsaal

न रहे तुम जो हमारे तो सहारा न रहा

न रहे तुम जो हमारे तो सहारा न रहा

कोई दुनिया-ए-मोहब्बत में हमारा न रहा

अब कोई और ज़माने में सहारा न रहा

जिस को कहते थे हमारा है हमारा न रहा

दे दिया हज़रत-ए-ईसा ने उसे साफ़ जवाब

तेरे बीमार का अब कोई सहारा न रहा

क्या कहें हाल ज़माने का ख़ुलासा ये है

तुम हमारे न रहे कोई हमारा न रहा

क्या कहूँ अंजुमन-ए-नाज़ का हाल ऐ 'बिस्मिल'

सब के चर्चे रहे बस ज़िक्र तुम्हारा न रहा

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