सब उम्र तो जारी नहीं रहता है सफ़र भी

सब उम्र तो जारी नहीं रहता है सफ़र भी

आता है किसी दिन तो बशर लौट के घर भी

मंज़िल तो बड़ी शय न मिली राहगुज़र भी

बाँधा था बड़े शौक़ से क्या रख़्त-ए-सफ़र भी

अंदर से फफोंदे हुए दीवार भी दर भी

देखे हैं बड़े लोगों के हम ने बड़े घर भी

हर सम्त है वीरानी सी वीरानी का आलम

अब घर सा नज़र आने लगा है मिरा घर भी

तन्हाई-पसंद इतना भी मत बन ये समझ ले

तन्हाई में है चैन तो तन्हाई में डर भी

पागल है पता पूछ रहा है मिरे घर का

क्या ख़ाना-ब-दोशों का हुआ करता है घर भी

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