यौम-ए-बर्क़
तिरी रौशन-दिमाग़ी पर हैं नाज़ाँ आसमाँ वाले
तिरी नाज़ुक-ख़याली पर हैं हैराँ गुल्सिताँ वाले
तिरी अज़्मत के क़ाइल दिल से हैं सारे-जहाँ वाले
सुख़न-दानों की महफ़िल में तू शम-ए-हुस्न-ए-महफ़िल है
सितारों में ज़िया-अफ़रोज़ मिस्ल-ए-माह-ए-कामिल है
समझते हैं तुझे सालार अपना कारवाँ वाले
कहीं अल्फ़ाज़ में हुस्न-ए-हक़ीक़ी की हैं तस्वीरें
कहीं अशआ'र में रम्ज़-ए-मोहब्बत की हैं तफ़्सीरें
तिरे दीवाँ को जाम-ए-जम समझते हैं जहाँ वाले
कहीं आँसू कहीं नग़्मे कहीं जल्वे जवानी के
तिरे अशआ'र आईने हैं हाल-ए-ज़िंदगानी के
कि जिन में अपनी सूरत देख लेते हैं जहाँ वाले
कहीं हुब्ब-ए-वतन की आग लफ़्ज़ों में भरी देखी
कहीं मंज़र-निगारी की हसीं जादूगरी देखी
वो तश्बीहें हैं जिन पर नाज़ करते हैं ज़बाँ वाले
जहाँ तू ने ज़रा बर्क़-ए-जमाल-ए-शे'र चमकाई
वहीं इक ज़िंदगी की लहर सी दौड़ी नज़र आई
तिरी शो'ला-नवाई पर हैं चुप शबनम-सिताँ वाले
तिरे अशआ'र ने रंग-ए-क़ुबूल-ए-आम पाया है
जहाँ में तू ने अपनी शेरियत से नाम पाया है
हमेशा याद रक्खेंगे तुझे हिन्दोस्ताँ वाले
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