मोहब्बत नग़्मा भी है साज़ भी है
मोहब्बत नग़्मा भी है साज़ भी है
शिकस्त-ए-साज़ की आवाज़ भी है
है निय्यत ही में दोज़ख़ और जन्नत
यही दम-सोज़ भी दम-साज़ भी है
न तोड़ें मेरा साज़-ए-दिल न तोड़ें
कि इस में आप की आवाज़ भी है
मोहब्बत यूँ तो है इक लफ़्ज़-ए-सादा
जो समझो तो फ़साना-साज़ भी है
क़फ़स परवाज़-ए-दुश्मन तो है लेकिन
क़फ़स इक दावत-ए-परवाज़ भी है
यही गुल है जो तस्वीर-ए-ख़मोशी
शिकस्त-ए-ग़ुंचा की आवाज़ भी है
नहीं ज़ंजीर-ए-पा ही ये तसव्वुर
जो बंध जाए पर-ए-पर्वाज़ भी है
मैं तेरा राज़ खोलूँ भी तो क्यूँ कर
कि तेरा राज़ मेरा राज़ भी है
ये दुनिया है जो ख़्वाब-ए-नाज़ 'रा'ना'
यही ता'बीर-ए-ख़्वाब-ए-नाज़ भी है
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