दुनिया में वफ़ा-केश बशर ढूँढ रहा हूँ
दुनिया में वफ़ा-केश बशर ढूँढ रहा हूँ
मैं नख़्ल-ए-सनोबर में समर ढूँढ रहा हूँ
मैं अपनी दुआओं में असर ढूँढ रहा हूँ
तारीक फ़ज़ाओं में क़मर ढूँढ रहा हूँ
मैं और तमाशा-ए-गुल-ओ-रंग पे माइल
खोया हुआ इक ज़ौक़-ए-नज़र ढूँढ रहा हूँ
वो सुब्ह-ए-क़यामत में हुए जाते हैं पिन्हाँ
मैं शाम-ए-मुसीबत की सहर ढूँढ रहा हूँ
ख़ुशबू की तरह ख़ल्वत-ए-गुल से हूँ रमीदा
ज़िंदान-ए-तमन्ना से मफ़र ढूँढ रहा हूँ
तश्बीह के अफ़्सूँ का असर पूछो न 'रा'ना'
शमशीर में उस बुत की नज़र ढूँढ रहा हूँ
(1105) Peoples Rate This