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अब तक तो यही पता नहीं है - बिमल कृष्ण अश्क कविता - Darsaal

अब तक तो यही पता नहीं है

अब तक तो यही पता नहीं है

इस शहर में क्या है क्या नहीं है

पत्ते को न इस तरह से देखो

टहनी से अभी गिरा नहीं है

चुप-चाप खड़ा हुआ हूँ कब से

एहसास तो है सदा नहीं है

इक लम्हे में मैं भी तू भी दुख भी

ज़ालिम कोई वक़्त सा नहीं है

जो अक्स है आइने में मेरा

उस से कोई वास्ता नहीं है

उस राह पे चल रहा हूँ कब से

जिस राह में नक़्श-ए-पा नहीं है

हर तन पे जो 'अश्क' ठीक बैठे

वो कोट अभी सिला नहीं है

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