बदन के लोच तक आज़ाद है वो
उसे तहज़ीब ने बाँधा नहीं है
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1097) Peoples Rate This
उसे छत पर खड़े देखा था मैं ने
प्यार है वो
एक दुनिया ने तुझे देखा है लेकिन मैं ने
जिस की हर बात में क़हक़हा जज़्ब था मैं न था दोस्तो
तुम तो कुछ ऐसे भूल गए हो जैसे कभी वाक़िफ़ ही नहीं थे
देखने निकला हूँ दुनिया को मगर क्या देखूँ
जिस्म में ख़्वाहिश न थी एहसास में काँटा न था
ऐसा हुआ कि घर से न निकला तमाम दिन
दुखती है रूह पाँव को लाचार देख कर
किधर जाऊँ कहीं रस्ता नहीं है
अब तक तो यही पता नहीं है