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नज़र आता है वो जैसा नहीं है - बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन कविता - Darsaal

नज़र आता है वो जैसा नहीं है

नज़र आता है वो जैसा नहीं है

जो कहते हो मगर वैसा नहीं है

नहीं होता है क्या क्या इस जहाँ में

वही जो चाहिए होता नहीं है

भरा है शहर फ़िरऔनों से अपना

कोई होता जो इक मूसा नहीं है

चलो इक और कोशिश कर के देखें

यूँही घुट घुट के मर जाना नहीं है

नहीं है ख़्वाब दीवाने का हस्ती

ये दुनिया सिर्फ़ इक धोका नहीं है

निहायत तल्ख़ है संगीन सच है

हक़ीक़त अपनी अफ़्साना नहीं है

नमक अश्कों का दिल को लग गया है

यहाँ अब कुछ कहीं उगता नहीं है

जो करना चाहिए वो ही किया है

मिलेगा अज्र क्या सोचा नहीं है

सुनाए जा रहे हैं अपनी अपनी

अजी सुनिए मुझे सुनना नहीं है

हमें छेड़े नहीं 'बिल्क़ीस' कोई

हमारा आज जी अच्छा नहीं है

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