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तिरी तलाश में निकला तो रास्ता हुआ मैं - बिलाल अहमद कविता - Darsaal

तिरी तलाश में निकला तो रास्ता हुआ मैं

तिरी तलाश में निकला तो रास्ता हुआ मैं

सो तेरे पाँव में हूँ राह देखता हुआ मैं

चटख़ रहा हूँ तो अब इस में क्या तअज्जुब है

ख़ुद अपने बोझ तले ही रहा दबा हुआ मैं

कहीं खिंचा रहा दुनिया से मिस्ल-ए-दस्त-ए-फ़क़ीर

मिसाल-ए-दस्त-ए-तमन्ना कहीं बढ़ा हुआ मैं

अजीब क़ैद थी जिस में बहुत ख़ुशी थी मुझे

अब अश्क थमते नहीं हैं ये क्या रिहा हुआ मैं

ये देख ग़ौर से पहचान अपनी कारीगरी

कि तेरे चाक से उतरा था कल बना हुआ मैं

बस एक चोट लगी थी कि बंद टूट गया

और अपना-आप बहा ले गया थमा हुआ मैं

ज़माने देखते हैं कितनी देर चलती है

बहुत डटा हुआ तू है बहुत जमा हुआ मैं

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