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कहाँ पहुँचेगा वो कहना ज़रा मुश्किल सा लगता है - भवेश दिलशाद कविता - Darsaal

कहाँ पहुँचेगा वो कहना ज़रा मुश्किल सा लगता है

कहाँ पहुँचेगा वो कहना ज़रा मुश्किल सा लगता है

मगर उस का सफ़र देखो तो ख़ुद मंज़िल सा लगता है

नहीं सुन पाओगे तुम भी ख़मोशी शोर में उस की

उसे तन्हाई में सुनना भरी महफ़िल सा लगता है

बुझा भी है वो बिखरा भी कई टुकड़ों में तन्हा भी

वो सूरत से किसी आशिक़ के टूटे दिल सा लगता है

वो सपना सा है साया सा वो मुझ में मोह-माया सा

वो इक दिन छूट जाना है अभी हासिल सा लगता है

ये लगता है उस इक पल में कि मैं और तू नहीं हैं दो

वो पल जिस में मुझे माज़ी ही मुस्तक़बिल सा लगता है

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