रहमत का तेरे उम्मीद-वार आया हूँ
रहमत का तेरे उम्मीद-वार आया हूँ
मुँह ढाँपे कफ़न में शर्मसार आया हूँ
आने न दिया बार-ए-गुनह ने पैदल
ताबूत में काँधों पे सवार आया हूँ
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रहमत का तेरे उम्मीद-वार आया हूँ
मुँह ढाँपे कफ़न में शर्मसार आया हूँ
आने न दिया बार-ए-गुनह ने पैदल
ताबूत में काँधों पे सवार आया हूँ
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