Hope Poetry of Bharat Bhushan Pant
नाम | भारत भूषण पन्त |
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अंग्रेज़ी नाम | Bharat Bhushan Pant |
शायद बता दिया था किसी ने मिरा पता
इतनी सी बात रात पता भी नहीं लगी
सच्चाइयों को बर-सर-ए-पैकार छोड़ कर
पराया लग रहा था जो वही अपना निकल आया
मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी
कुछ न कुछ सिलसिला ही बन जाता
ख़्वाहिश-ए-पर्वाज़ है तो बाल-ओ-पर भी चाहिए
ख़ुद पर जो ए'तिमाद था झूटा निकल गया
कभी सुकूँ कभी सब्र-ओ-क़रार टूटेगा
कब तक गर्दिश में रहना है कुछ तो बता अय्याम मुझे
जुस्तुजू मेरी कहीं थी और मैं भटका कहीं
इश्क़ का रोग तो विर्से में मिला था मुझ को
दीद की तमन्ना में आँख भर के रोए थे
चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग
अंधेरा मिटता नहीं है मिटाना पड़ता है