ये सब तो दुनिया में होता रहता है
हम ख़ुद से बे-कार उलझने लगते हैं
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पराया लग रहा था जो वही अपना निकल आया
आँखों में एक बार उभरने की देर थी
समुंदरों को भी दरिया समझ रहे हैं हम
आईने से पर्दा कर के देखा जाए
हम काफ़िरों ने शौक़ में रोज़ा तो रख लिया
मैं अब जो हर किसी से अजनबी सा पेश आता हूँ
रिश्तों के जब तार उलझने लगते हैं
दामन के चाक सीने को बैठे हैं जब भी हम
अब तो इतनी बार हम रस्ते में ठोकर खा चुके
चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग
उसे इक बुत के आगे सर झुकाते सब ने देखा है
क़ुर्बतें नहीं रक्खीं फ़ासला नहीं रक्खा