सूरज से उस का नाम-ओ-नसब पूछता था मैं
उतरा नहीं है रात का नश्शा अभी तलक
Gulzar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(772) Peoples Rate This
कब तक गर्दिश में रहना है कुछ तो बता अय्याम मुझे
ये क्या कि रोज़ उभरते हो रोज़ डूबते हो
ख़्वाहिश-ए-पर्वाज़ है तो बाल-ओ-पर भी चाहिए
मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है
ख़्वाहिशों से वलवलों से दूर रहना चाहिए
ख़ुद पर जो ए'तिमाद था झूटा निकल गया
सबब ख़ामोशियों का मैं नहीं था
आब की तासीर में हूँ प्यास की शिद्दत में हूँ
कब तलक चलना है यूँ ही हम-सफ़र से बात कर
दयार-ए-ज़ात में जब ख़ामुशी महसूस होती है
मैं अब जो हर किसी से अजनबी सा पेश आता हूँ
मैं ने माना एक गुहर हूँ फिर भी सदफ़ में हूँ