इस तरह तो और भी दीवानगी बढ़ जाएगी
पागलों को पागलों से दूर रहना चाहिए
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दयार-ए-ज़ात में जब ख़ामुशी महसूस होती है
सब ने होंटों से लगा कर तोड़ डाला है मुझे
ख़्वाब जीने नहीं देंगे तुझे ख़्वाबों से निकल
मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है
मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी
दश्त में उड़ते बगूलों की ये मस्ती एक दिन
हमारे हाल पे अब छोड़ दे हमें दुनिया
शायद बता दिया था किसी ने मिरा पता
इतना तो समझते थे हम भी उस की मजबूरी
उम्मीदों से पर्दा रक्खा ख़ुशियों से महरूम रहीं
एक जैसे लग रहे हैं अब सभी चेहरे मुझे