एक जैसे लग रहे हैं अब सभी चेहरे मुझे
होश की ये इंतिहा है या बहुत नश्शे में हूँ
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Gulzar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Wasi Shah
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याद भी आता नहीं कुछ भूलता भी कुछ नहीं
ख़ामोशी में चाहे जितना बेगाना-पन हो
हर एक रात में अपना हिसाब कर के मुझे
इश्क़ का रोग तो विर्से में मिला था मुझ को
पराया लग रहा था जो वही अपना निकल आया
कुछ न कुछ सिलसिला ही बन जाता
क़ुर्बतें नहीं रक्खीं फ़ासला नहीं रक्खा
सब ने होंटों से लगा कर तोड़ डाला है मुझे
रिश्तों के जब तार उलझने लगते हैं
इतनी सी बात रात पता भी नहीं लगी
सूरज से उस का नाम-ओ-नसब पूछता था मैं
सबब ख़ामोशियों का मैं नहीं था