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मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है - भारत भूषण पन्त कविता - Darsaal

मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है

मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है

कहाँ तन्हाई घर की अब किसी से बात करती है

हमेशा उस की बातों में अँधेरों का वही रोना

ये शब जब भी दिए की रौशनी से बात करती है

मैं जब मायूस हो कर रास्ते में बैठ जाता हूँ

तो हर मंज़िल मिरी आवारगी से बात करती है

सुकूत-ए-शब में जब सारे मुसाफ़िर सोए होते हैं

उन्हीं लम्हात में कश्ती नदी से बात करती है

कभी चुप चाप तारीकी की चादर ओढ़ लेती है

कभी वो झील शब भर चाँदनी से बात करती है

दयार-ए-ज़ात में उस वक़्त जब मैं भी नहीं होता

कोई आवाज़ मेरी ख़ामुशी से बात करती है

हमेशा उस के चेहरे पर अजब सा ख़ौफ़ रहता है

कभी जब मौत मेरी ज़िंदगी से बात करती है

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